भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माया एंजलो |अनुवादक=देवेश पथ सारि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माया एंजलो
|अनुवादक=देवेश पथ सारिया
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम मेरा इतिहास लिख सकते हो
अपने कड़वे, मुड़े-तुड़े झूठों से
तुम मुझे गंदगी में कुचल सकते हो
फ़िर भी, धूल की तरह, मैं उठूंगी।
क्या मेरी उन्मुक्तता तुम्हें तंग करती है?
क्यों घिरे हो तुम अंधकार में?
क्योंकि मैं चलती हूं
जैसे मेरे पास हों
कमरे में तेल उगलते हुए कुएं।
चांदों और सूरजों की तरह
ज्वार भाटों की निश्चितता के साथ
उम्मीद की तरह फूट पड़ूंगी
मैं फ़िर भी उठूंगी।
क्या तुम देखना चाहते थे मुझे विखंडित?
मेरा सर झुका हुआ और नज़रें गड़ी हुईं?
कंधे आंसुओं की तरह गिरते हुए
मेरे भावपूर्ण रुदन से (मुझे) कमज़ोर ?
क्या मेरा गर्वीलापन तुम्हें करता है नाराज़?
क्या तुम उसे कुछ ज़्यादा ही महसूस नहीं करते
क्योंकि मैं हंसती हूं
जैसे मेरे आंगन में सोने की खदानें हों।
तुम मुझे गोली मार सकते हो अपने शब्दों से
अपनी आंखों से काट सकते हो तुम मुझे
मार सकते हो तुम मुझे अपनी नफ़रत से
फ़िर भी, हवा की तरह, मैं उठूंगी।
क्या मेरी कामुकता तुम्हें दुखी करती है?
क्या यह एक आश्चर्य है तुम्हारे लिए
कि मैं नाचती हूं
जैसे मेरी जांघों के संधिबिंदु पर हीरे गड़े हों
इतिहास की शर्मनाक झोपड़ियों से बाहर
मैं उठूंगी
दर्द में गड़े भूतकाल से ऊपर
मैं उठूंगी
मैं एक काला समुद्र हूं, फैलता हुआ और विस्तृत
मैं सहती हूं ज्वार के दौरान उफनना और उमड़ना
आतंक और डर की रातों को पीछे छोड़ते हुए
मैं उठती हूं
अद्भुत स्पष्ट भोर के साथ
मैं उठती हूं
अपने पूर्वजों के दिए उपहार मैं लाती हूं साथ
मैं स्वप्न हूं और हूं दासों की उम्मीद
मैं उठती हूं
मैं उठती हूं
मैं उठती हूं।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद: देवेश पथ सारिया'''
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=माया एंजलो
|अनुवादक=देवेश पथ सारिया
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम मेरा इतिहास लिख सकते हो
अपने कड़वे, मुड़े-तुड़े झूठों से
तुम मुझे गंदगी में कुचल सकते हो
फ़िर भी, धूल की तरह, मैं उठूंगी।
क्या मेरी उन्मुक्तता तुम्हें तंग करती है?
क्यों घिरे हो तुम अंधकार में?
क्योंकि मैं चलती हूं
जैसे मेरे पास हों
कमरे में तेल उगलते हुए कुएं।
चांदों और सूरजों की तरह
ज्वार भाटों की निश्चितता के साथ
उम्मीद की तरह फूट पड़ूंगी
मैं फ़िर भी उठूंगी।
क्या तुम देखना चाहते थे मुझे विखंडित?
मेरा सर झुका हुआ और नज़रें गड़ी हुईं?
कंधे आंसुओं की तरह गिरते हुए
मेरे भावपूर्ण रुदन से (मुझे) कमज़ोर ?
क्या मेरा गर्वीलापन तुम्हें करता है नाराज़?
क्या तुम उसे कुछ ज़्यादा ही महसूस नहीं करते
क्योंकि मैं हंसती हूं
जैसे मेरे आंगन में सोने की खदानें हों।
तुम मुझे गोली मार सकते हो अपने शब्दों से
अपनी आंखों से काट सकते हो तुम मुझे
मार सकते हो तुम मुझे अपनी नफ़रत से
फ़िर भी, हवा की तरह, मैं उठूंगी।
क्या मेरी कामुकता तुम्हें दुखी करती है?
क्या यह एक आश्चर्य है तुम्हारे लिए
कि मैं नाचती हूं
जैसे मेरी जांघों के संधिबिंदु पर हीरे गड़े हों
इतिहास की शर्मनाक झोपड़ियों से बाहर
मैं उठूंगी
दर्द में गड़े भूतकाल से ऊपर
मैं उठूंगी
मैं एक काला समुद्र हूं, फैलता हुआ और विस्तृत
मैं सहती हूं ज्वार के दौरान उफनना और उमड़ना
आतंक और डर की रातों को पीछे छोड़ते हुए
मैं उठती हूं
अद्भुत स्पष्ट भोर के साथ
मैं उठती हूं
अपने पूर्वजों के दिए उपहार मैं लाती हूं साथ
मैं स्वप्न हूं और हूं दासों की उम्मीद
मैं उठती हूं
मैं उठती हूं
मैं उठती हूं।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद: देवेश पथ सारिया'''
</poem>