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Kavita Kosh से
बहुत दूर आ जाती हैं।
वहाँ इंतज़ार इन्तज़ार कर रहे हैं
उन्हें देखने आए हुए वर पक्ष के लोग
वहाँ अम्मा बैठी राह तकती है
कि बेटियाँ आएं आएँ तोसंतोषी सन्तोषी माता की कथा सुनाएंसुनाएँ
और
वे अपना व्रत तोड़ें।
वहाँ बाबूजी प्रतीक्षा कर रहे हैं
पकौड़ी और चाय की
वहाँ भाई घूम-घूम कर लौट आ रहा है
और वे हँस रही हैं
कि यह ज़िन्दगी नहीं है
हँस रही हैं
रेफ़री की चेतावनी पर।
एक छोर से दूसरे छोर तक।
उनकी पुष्ट टांगें टाँगें चमक रही हैं
नृत्य की लयबद्ध गति के साथ
और लड़कियाँ हैं कि निर्द्वन्द्व निश्चिन्त हैं
रेफ़री है कि बाज नहीं आएगा
सीटी बजाने से
और स्टिक लटकाये लटकाए हाथों में
एक भीषण जंग से निपटने की
तैयारी करती लड़कियाँ लौटेंगी घर।
अगर ऐसा न हो तो
समय रुक जाएगा
इन्द्र-मरुत-वरुण सब कुपित हो जाएंगेजाएँगे
वज्रपात हो जाएगा, चक्रवात आ जाएगा
घर पर बैठे
देखने आए वर पक्ष के लोग
पैर पटकते चले जाएंगेजाएँगेबाबूजी घुस आएंगे गरजते आएँगे गरज़ते हुए मैदान में
भाई दौड़ता हुआ आएगा
और झोंट पकड़कर घसीट ले जाएगा
अम्मा कोसेगी-—
'किस घड़ी में पैदा किया था
ऐसी कुलच्छनी बेटी को!'बाबूजी चीखेंगे-चीख़ेंगे —
'सब तुम्हारा बिगाड़ा हुआ है !'
घर फिर एक अँधेरे में डूब जाएगा
खटिया पर चित्त लेटी हुईं
अम्मा की लम्बी साँसें सुनतीं
सपने में दौड़ती हुई बॉल के पीछे
स्टिक को साधे हुए हाथों में
पृथ्वी के छोर पर पहुँच जाएंगीजाएँगी
और 'गोल-गोल' चिल्लाती हुईं
एक दूसरे को चूमती हुईं
लिपटकर धरती पर गिर जाएंगी जाएँगी !
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