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Kavita Kosh से
पर प्रेम
वह तो जब विस्तृत होता है
सारा संसार उसमें समां समा सकता है
यह समय है
प्रेम कि की पीड़ा को जानने का
आग के दरिया से तैर जाने का
प्रेम कि की आरी से तराशे जाकर हीरा बनाने का
प्रेम तो गहना है