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तुम सर्दी की धूप / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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[[प्रेम का उदात्त रूप, ‘तुम सर्दी की धूप’ / स्मृति शुक्ला
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'''किससे कहूँ, कितना कहूँ'''
वीरबाला
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