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07:03, 3 जून 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=बबली गुज्जर
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|संग्रह=
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<poem>
मेरी दोस्त, शायद तुम्हें अजीब लगे,
पर जब तुम अपने बाबा के सीने लगकर
उनका हाथ थामे, उन्हें बाहों में कसकर
दिखा देती हो हमें कोई सुंदर तस्वीर
हम पिता को खो चुकी बच्चियां
उस भूखे बालक सी रह जाती हैं तरसती
जिसे भिक्षा में मिली एकलौती रोटी
ज़मीन पर गिरकर हो गई है किरकली
</poem>