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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रदीप त्रिपाठी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम्हारा जाना
जैसे कि कोई शब्द नहीं
तुम्हारा न होना
जैसे कि कोई धूप और मिट्टी नहीं
तुम सा न होना
जैसे कि गुमशुदा मन
तुममें न होना
जैसे कि आत्मा की रुंधी आवाज
तुम्हारा होना
जैसे कि एक अश्क छलकता प्रेम
तुमसे दूर होना
जैसे कि हर दुःख पहाड़ और नदी।
</poem>
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|रचनाकार=प्रदीप त्रिपाठी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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तुम्हारा जाना
जैसे कि कोई शब्द नहीं
तुम्हारा न होना
जैसे कि कोई धूप और मिट्टी नहीं
तुम सा न होना
जैसे कि गुमशुदा मन
तुममें न होना
जैसे कि आत्मा की रुंधी आवाज
तुम्हारा होना
जैसे कि एक अश्क छलकता प्रेम
तुमसे दूर होना
जैसे कि हर दुःख पहाड़ और नदी।
</poem>