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बहुत पुरानी हो गईफिर भी अपनी मुस्कान लिएदीवार पर सजी है-तश्वीर पिताजी की। सुबह-सवेरे वे रोजभरते हैं मुझ में नया जीवनघर से निकते समय देखता हूं उन्हेंजीवन की भागा-दौड़ मेंसोचता हूं- इस रविवार कोतश्वीर साफ करूंगा। काफी महीने हो गएवह रविवार नहीं आया,मैं ग्लानि से भरता हूंफिर भी दीवार पर-तश्वीर में पिताजीमुस्कान लिए कहते हैं-कोई बात नहीं !</poem>