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Kavita Kosh से
लोग दूर जा रहे हैं
और बढ़ रहा है
इस ‘स्पेस’ का अनुवाद
'विस्तार' नहीं, 'अंतरिक्ष' करूँगी मैं,
जो भी जहाँ है सबका धन्यवाद
कि इस समय मुझमें सब हैं,
सबमें मैं हूँ थोड़ी-थोड़ी!
भाँय-भाँय बजाता है हारमोनियम
मेरा ख़ाली घर !
इस ‘ख़ाली’ समय में
बहुत काम हैं। हैं ।
अभी मुझे घर की उतरनों का
कि एक झाग-भरे सिंक का
क्या मैं कभी कर सकूँगी
किसी राग में अनुवाद?
दरअसल, इस पूरे घर का
इसमें ही हो जाएगी शाम,
ओर इस शाम का अनुवाद
इतना ही करूँगी कि उठूँगी— उठूँगी — खोल दूँगी पर्दे!
अंतिम उजास की छिटकी हुई किर्चियाँ
पल भर में भर देंगी
सारा का सारा स्पेस
और फिर उसका अनुवाद
‘अंतरिक्ष’ नहीं, ‘विस्तार’ करूँगी मैं— मैं — केवल विस्तार!
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