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अब सोचा है (मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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04:42, 19 सितम्बर 2022
-0-(21-9-1981)
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तन बहुत बार बना है योगी, पर मन योगी हो नहीं
पाया ।
पाया।
जहाँ बँधी कोई डोर नेह की, बस वहीं पर भरमाया।
सुधियों ने दुलराया कितना, लेकरके अपने आँचल में।
वीरबाला
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