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-0-(21-9-1981)
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तन बहुत बार बना है योगी, पर मन योगी हो नहीं पाया ।पाया।
जहाँ बँधी कोई डोर नेह की, बस वहीं पर भरमाया।
सुधियों ने दुलराया कितना, लेकरके अपने आँचल में।