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स्वयं / कल्पना मिश्रा

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<poem>
अपना दुःख खुद भोगना पड़ता है
अपना दर्द स्वयं सहना पड़ता है,
अपने कश्मकश से स्वयं जूझना पड़ता है,
अपने सत्य को स्वयं खोजना पड़ता है।

जीवन में तुम्हारे हिस्से दोनो पक्ष हैं
सुख तो शायद बाँट भी लो
दुःख कितना भी बाँट लो
कम नहीं होता,

अपने अनुभव खुद जोड़ने पड़ते हैं
जीवन का हर पग खुद चलना पड़ता है
अपनी मंजिल खुद तलाशनी होती है
अपने आप को स्वंय बचाना पड़ता है।

जीवन सबक, स्वंय सीखाता है
अपने फलसफे खुद ढूँढ़ने पड़ते हैं।
कोई तुम्हारा हो कर भी तुम्हारा नहीं
तुम अकेले हो, समर्थ हो, आगे बढो।
</poem>