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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
नहीं मिटतीं तेरी यादें नदी में ख़त बहाने से,
ये अक्सर लौट आतीं हैं किसी दिलकश बहाने से।
नमकपाशी ज़माने ने मेरे ज़ख्मों पे की पैहम,
मगर वो रोक कब पाया है मुझको मुस्कुराने से।
तुम्हें जिसके लिए हमने चुना वो काम भी करना,
मिले तुमको अगर फ़ुर्सत हमारा घर जलाने से।
मुक़ाबिल आईने के आ गया है भूल से शायद,
मुझे लगता है कुछ ऐसा ही उसके तिलमिलाने से।
क़फ़स को तोड़ने की अब के उसने दिल में ठानी है,
यही पैग़ाम मिलता है परों के फड़फड़ाने से।
</poem>
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|संग्रह=
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नहीं मिटतीं तेरी यादें नदी में ख़त बहाने से,
ये अक्सर लौट आतीं हैं किसी दिलकश बहाने से।
नमकपाशी ज़माने ने मेरे ज़ख्मों पे की पैहम,
मगर वो रोक कब पाया है मुझको मुस्कुराने से।
तुम्हें जिसके लिए हमने चुना वो काम भी करना,
मिले तुमको अगर फ़ुर्सत हमारा घर जलाने से।
मुक़ाबिल आईने के आ गया है भूल से शायद,
मुझे लगता है कुछ ऐसा ही उसके तिलमिलाने से।
क़फ़स को तोड़ने की अब के उसने दिल में ठानी है,
यही पैग़ाम मिलता है परों के फड़फड़ाने से।
</poem>