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|रचनाकार=वीत्येज़स्लव नेज़्वल
|अनुवादक=शारका लित्विन
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<poem>
कर्मचारियों का युग
सौभाग्य के समापन के द्वार पर खड़ा है
सुस्त और पुरानी आदतों से बिगड़ा हुआ
आदमी घोड़े में बदलता है

कितने सुन्दर हैं मज़दूर सेवा-मुक्त होने की सम्भावना से
भविष्य क्रूर नहीं होगा उनके लिए
उनकी तुरही की आवाज़ हवा में गूँजती है

यक़ीनी सुस्त चमड़ी वाले, परजीवियों का क्रोधित झुण्ड
गुलाब के कटोरे से निकलेगा
तब आएगा कवियों का युग ।

'''मूल चेक भाषा से अनुवाद : शारका लित्विन'''
</poem>
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