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Kavita Kosh से
ये बह्र ये अरकान अभी सीख रहा हूँ
होने की फरिश्ता फ़रिश्ता नहीं ख़्वाहिश मुझे हरगिज़
बनना ही मैं इंसान अभी सीख रहा हूँ
आग़ाज़े महब्बत मुहब्बत में ये ग़मज़े ये अदाएं
ले लें न कहीं जान अभी सीख रहा हूँ
हर शय से हूँ अंजान अभी सीख रहा हूँ
महफ़ूज़ न रख पाऊँगा दौलत के ख़ज़ीनेख़ज़ाने
कहता है ये दरबान अभी सीख रहा हूँ