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उस रोज़ / अनीता सैनी

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उस रोज़
घने कोहरे में
भोर की बेला में
सूरज से पहले
तुम से मिलने
आई थी मैं
लैंपपोस्ट के नीचे
तुम्हारे इंतज़ार में
घंटों बैठी रही
एहसास का गुलदस्ता
दिल में छिपाए
पहनी थी उमंग की जैकेट
विश्वास का मफलर
गले की गर्माहट बना
कुछ बेचैनी बाँटना
चाहती थी तुमसे
तुम नहीं आए
रश्मियों ने कहा-
तुम निकल चुके हो
अनजान सफ़र पर।
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