भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
1,145 bytes removed,
11:31, 8 जुलाई 2023
प्रेमी प्रेम का प्रतिरूप
कैसे मौन स्पंदन में डूबना लिखूँ?
-0-
बहुत दिनों के बाद
कमला निखुर्पा
बहुत दिनों के बाद
खिलखिलाकर हँसे हम
सृष्टि हुई सतरंगी ...
दूर क्षितिज पर
चमका इंद्रधनुष...
कि हाथों में पिघलती गई आइसक्रीम ...
मीठी बूँदें जो गिरी आँचल पर
परवाह नहीं की...
चटपटी नमकीन संग
मीठे जूस की चुस्की भर
गाए भूले बिसरे गीत।
नीले अम्बर तले
बादलों के संग-संग
हरी-भरी वादियों में
डोले जीभर
झूले जीभर
बिताए कुछ यादगार पल ...
तो हुआ ये यकीं ...
ओ जिंदगी! सुनो जरा
सचमुच तुम तो हो बहुत हसीं ...
बस हमें ही जीना नहीं आया कभी...
-0-
</poem>