भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विरह / अनीता सैनी

1,433 bytes added, 14:46, 13 जुलाई 2023
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता सैनी }} {{KKCatKavita}} <poem> समय का सोता...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनीता सैनी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
समय का सोता जब
धीरे-धीरे रीत रहा था
मैंने नहीं लगाए मुहाने पर पत्थर
न ही मिट्टी गूँथकर लगाई
भोर घुटनों के बल चलती
दुपहरी दौड़ती
साँझ फिर थककर बैठ जाती
दिन सप्ताह, महीने और वर्ष
कालचक्र की यह क्रिया
स्वयं ही लटक जाती
अलगनी पर सूखने
स्वाभिमान का कलफ अकड़ता
कि झाड़-फटकार कर
रख देती संदूक के एक कोने में
प्रेम के पड़ते सीले से पदचाप
वह माँझे में लिपटा पंछी होता
विरक्ति से उन्मुख मुक्त करता
मैं उसमें और उलझ जाती
कौन समझाए उसे
सहना मात्र ही तो था
ज़िंदगी का शृंगार
विरह मुक्ति नहीं
इंतज़ार का सेतु चाहता था।
</poem>