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बची एक लोहार की / राम सेंगर

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{{KKRachnaKKPustak|चित्र=|नाम=बची एक लोहार की
|रचनाकार=राम सेंगर
|संग्रहप्रकाशक=|वर्ष=|भाषा=हिन्दी|विषय=कविता|शैली=नवगीत|पृष्ठ=|ISBN=|विविध=
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{{KKCatKavitaKKCatNavgeet}}<poem>बढ़े फासले अपरिचयों के और भी,साझेदारी कैसी भाव-विचार की।रिश्ते होतेनए अर्थ को खोलतेसंग-साथ के सहकारी उत्ताप सेउड़ीं परस्परता की मानों धज्जियाँअविश्वास के इसी घिनौने पाप सेजोड़-तोड़ की होड़ों ====इस पुस्तक मेंसंकलित रचनाएँ====धुँधुआ गईपारदर्शिता, आपस के व्यवहार की।गवेषणा मेंसच के पहलू दब गएजो उभरा सो, सच से कोसों दूर थाबात उठी ही नहींनिकष के दोष कीपड़तालों का मुद्दा उठा जरूर थाचोर द्वार सेछल, नीयत में आ घुसाधरी रही अधलिखीपटकथा प्यार की।समरसता मेंछिपा सिला तदवीर काबने महास्वर, कलकंठों के राग सेपटरी पर आतेदिन अच्छे एक दिनतमस काटते, अपनी मिलजुल आग सेहुआ न ऐसा कुछसुनार की सौ हुईंविपर्यास पर, * [[बची एक लोहार की।<की (नवगीत) /poem>राम सेंगर]]
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