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कुछ न कुछ हुस्न की रानाइयां रह जायेंगी<br><br>
तुम तो इस झील के साहिल पे मिली होमुझ से<br>मुझ से जब भी देखूंगा यहीं मुझ को नज़र आओगी<br><br>
याद मिटती है न मंज़र कोई मिट सकता है<br>
दूर जाकर भी तुम अपने को यहीं पाओगी<br><br>
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