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|रचनाकार=राजकुमारी रश्मि|अनुवादक=
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बीड़ी फूँक फूँक
दिन अपने
काटे, राम भजन.रामभजन ।
तीन माह से मिल वालों से
वेतन नहीं मिला , कितने घर ऐसे हैं, जिनमें चूल्हा नहीं जला , आश्वासन की बूंदे बून्दें कब तक चाटे राम भजन.रामभजन ।
लीडर की बातों मे आकर
मारी पैर कुल्हाड़ी , कई कई दिन, उसे कहीं भी
मिलती नहीं दिहाड़ी
दारू भी तो नहीं
कहाँ दुःख दुख बाँटे राम भजन.रामभजन ।</poem>