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'''1.उद्विग्न आकाश'''
दम घोंट देता है अनवरत वातावरण में बढ़ता हुआ प्रदूषण
वृक्षों की अंधाधुंध अन्धाधुन्ध कटाई से खोता धरा का हरित आभूषण।आभूषण ।
स्वार्थ के वशीभूत लालच की चौखट पर दम तोड़ते संबंधसम्बन्धसहनशीलता के अभाव में विफल होते प्रीति के अनुबंधअनुबन्ध
अर्थ और स्वातंत्र्य की प्रधानता में समाज का बिखराव
भौतिक विलासिता की चाह का समन्वय से होता टकराव।टकराव ।
वेदना की चादर ओढ़े मानव, स्वयं के एकाकीपन से जूझता
मानसिक यंत्रणा से त्रस्त, उद्विग्न आकाश अश्रुओं में भींगता।।भींगता ।।
'''2. ग्राम्य जीवन'''
नीले अंबर अम्बर के आंगन आँगन में भोर का सूरज उगता
सोकर उठ जाने को मानो सारे जग से कहता
जल भरने घट लेकर जातीं ललनायें ललनाएँ पनघट पर
करने को स्नान जमा हों नारी सब सरि तट पर
हरीतिमा की चादर ओढ़े वसुन्धरा इठलाती
खेतों की ये मेड़ भी देखो इधर - उधर बल खाती
सर्पीले लम्बे रस्ते पर पसरी बूढ़े बरगद की छाया
स्वेद बिन्दु ,श्रम के चमकाएँ क्लान्त कृषक की काया ।
फूली सरसों , शीत पवन से मंद मंद मन्द - मन्द सी लहरायेलहराएचारा खाकर गौ माता भी बैठ चैन से पगुरायेपगुराएमधुर मधुर घंटी घण्टी की ध्वनि नीरवता में स्वर भरती
पेड़ों के झुरमुट में छिपकर कोयल कलरव करती
प्रेम दया करुणा से सुरभित, रहता जीवन ग्राम्य
जीना- मरना इस माटी में, एकमात्र हो काम्य।।'''3.भरत'''काम्य ।।
आदर्शों की खान कहाते और धर्म के अनुपम ज्ञाता
है आचरण पुनीत, अनुकरण योग्य, सहज सुखदायकसन्यासी संन्यासी सी चित्तवृत्ति धरते कर में रखते धनु सायक।सायक ।
जब साम्राज्ञी माता ने उनको राजतिलक के लिए मनाया
कपट पूर्ण व्यवहार भरत के मन को तनिक न भाया
दशरथ पिता मरण का कारण स्वयं को उसने माना
व्यथित कर गया राम सिया का लक्ष्मण संग वन जाना। राज्य अयोध्या श्री राम को देने जब चित्रकूट प्रस्थान कियागुरु वशिष्ठ, माताओं, नगर वासियों ने अति सम्मान दियाप्रभु की आज्ञा कर शिरोधार्य वह चरण पादुका ले आयेजा नंदीग्राम में वास किया और भक्त शिरोमणि कहलाये।जाना ।
त्यागा सभी राज्य का वैभव, अपनाया साधक का जीवन ।
अपने प्रभु श्रीराम चरण में, किया समर्पित तन, मन, धन ।।
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