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Kavita Kosh से
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जिस घड़ी बाज़ू मेरे चप्पू नज़र आने लगे।
झील , सागर , ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे।
ज़िंदगी के बोझ से हम झुक गये थे क्या ज़रा,