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03:05, 31 मार्च 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=अप्रकाशित डायरी से / भवानीप्रसाद मिश्र
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<poem>
क़लम तेरे हाथ में है, जो चाहे सो लिख
कुछ न सूझे तो अपना नाम लिख
क्या ज़रूरी है कि जो कुछ लिखा, वह छपे सभी
न छपे सही अँगीठी के काम आएगा कभी
दम होगा तो धधक जाएगा
बोदा होगा तो बुझ जाएगा
लिखने की बेला बड़ी पावन होती है
सूखे मन के लिए सावन होती है
रोशनाई और क़लम का संयोग होता है
मन को सँजोने का प्राणान्तक योग होता है
क़लम तेरे हाथ में है, ललकार कर लिख
काग़ज़ हज़ार काले हों, मग़र कालिख़ न लिख ।
</poem>