Changes

घास / पाश

104 bytes added, 22:03, 21 नवम्बर 2008
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=पाश|संग्रह=}} <Poem>मैं घास हूंहूँमैं आपके हर किए -धरे पर उग आउंगाआऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपडि़यों झोपड़ियों पर
मुझे क्‍या करोगे
मैं तो घास हूं हूँ हर चीज चीज़ पर उग आउंगाआऊंगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना जिलाज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...
दो साल... दस साल बाद
सवारियां सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगीयह कौन -सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहां जहाँ हरे घास का जंगल हैमैं घास हूंहूँ, मैं अपना काम करूंगामैं आपके हर किए -धरे पर उग आउंगा।आऊंगा। </poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,410
edits