Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राहुल शिवाय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
भूल रहे हैं
ख़ामोशी से सोना पर्वत
देवदार, चीड़ों, बर्फ़ों का
होना पर्वत

बाँट रहे
मैदान
आजकल रोज़ दरारें
दौड़ रहीं
उसके सीने पर
मोटर-कारें

सीख रहे हैं
आज धैर्य को खोना पर्वत

टूट रहा
एकांत
संत की घोर तपस्या
कितने दिन तक
और सहेगी
शोर तपस्या

फटे बादलों से
सीखेंगे रोना पर्वत
पूछ रहे हैं
धरती पर
तुमने क्या बोया
तुम्हें पता है
पर्वत-मन ने
क्या-क्या खोया

नहीं जानते थे कल
दुख को ढोना पर्वत।
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,574
edits