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लिख -लिख कर मन का के रोने से निकले हुए निकली हुई पंक्तियों कोअव्यवस्थाओँ अव्यवस्थाओं के प्रसंग और प्रतिकूलताभरी प्रतिकूलताओं भरे लम्हों को
भयभीत है कवि
कहीँ कहीं भाग न जाए पीडाओँ जाएं पीड़ाओं के अभिलेखअपनी ही कविता से दिन दहाडे।-दहाड़े।
पंक्तियाँ गुमे हुए गुम हुई कोई बेदाँत कविताकैसी दीखती होगी –होगी—कल्पना कर रहा है कवि ।कवि।
कैसा होता होगा वो भयानक परिदृष्य -परिदृश्य—जब निकलकर कविता से वेदनाओँ के पंक्तियोँ का वेदनाओं की पंक्तियों की कतारकवि के विरुद्ध में नारा लगाते हुए सड़क पर चलने लगेगा सडक पर । लगेगी।
कविओँ का कवियों की निरीह जमात कैसे चीरलेती चीर लेती होगीअपने ही काव्यहरफोँ का काव्यहरफों पर लगाया हुवा हुआ महाभियोग को ?
कौन करता होगा वार्ता में मध्यस्थता
विद्रोही हरफोँ हरफों से? और क्या होता होगा सहमती सहमति का विन्दुबिंदु?
प्रतिरोध के अश्रुग्यास और गोलीयोँ के बारीश गोलियों की बारिश को पार करते हुएअदालत तक कैसे पहुँचता होगा दुःखी दुखी हरफों का ताँता
और कैसे दायर करता होगा रिट निवेदन
कवियोँ कवियों के विरुद्ध में ! ?
आखिर कब आएगा वो दिन
जब कविता में पीडा पीड़ा को लिखना ना पडेन पड़ेयही सोच रहा है आजकल एक कवि !
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