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को उन

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|नाम=को उन
|उपनाम=Go-eun
|मृत्यु=
|कृतियाँ=सुबह की ओस (1996), मेरी लहरों के स्वर (1960-1990 की चुनी हुई कविताएँ), दस हज़ार लोगों का जीवन (2005)
 
|विविध=कोरिया पर जापानी कब्ज़ा होने के बावजूद को उन के पितामह ने उन्हें कोरियाई भाषा सिखाई। फिर बारह वर्ष की उम्र में उन्हें कोरियाई कवि हान हा-उन की कविताओं की एक किताब मिल गई। उनकी कविताओं के प्रभाव में ही को उन ने कविताएँ लिखना शुरू कर दिया। जब अभी वे स्कूल में ही पढ़ रहे थे कि 1950 में कोरियाई युद्ध शुरू हो गया, जिसमें उनके बहुत से सम्बन्धी और रिश्तेदार मारे गए। उन दिनों को उन ने क़ब्रें ख़ोदने का काम किया। बाद में युदध के शोर से कवि इतने आजिज़ आ गए कि उन्होंने अपने कान में तेज़ाब डाल लिया। 1952 में को बौद्ध साधु बन गए। 1960 में उनका पहला कविता-संग्रह ’दूसरी दुनिया की अनुभूति’ प्रकाशित हुआ। तभी उन्होंने एक उपन्यास भी लिखा — दूसरी दुनिया में चेरी का पेड़। और फिर से सामान्य दुनिया में वापिस लौटने का फ़ैसला किया। 1966 में वे जेजु प्रान्त के एक द्वीप पर रहने चले गए, जहाँ उन्होंनीक ख़ैराती स्कूल की स्थापना की। फिर 1970 से वे सिओल में रहने लगे। तब तक इन्हें शराब पीने की लत लग गई थी। अपनी इस शराबख़ोरी से परेशान होकर 1970 में ही उन्होंने ज़हर पीकर आत्महत्या करने की कोशिश की।1972 के अंत में जब दक्षिण कोरियाई सरकार ने युसिन संविधान को आगे बढ़ाकर लोकतंत्र पर अंकुश लगाने का प्रयास किया, तो वे लोकतंत्र आन्दोलन में सक्रिय हो गए। 1974 में उन्होंने सक्रिय आज़ादी के लिए लेखक नामक एक संगठन की स्थापना की। फिर उसी वर्ष राष्ट्रीय लोकतन्त्र पुनर्स्थापना संस्था के के प्रतिनिधि बन गए। 1978 में वे कोरियाई मानवाधिकार संघ के उपाध्यक्ष बने और 1979 में राष्ट्रीय एकता संस्था के उपाध्यक्ष बने।
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