भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कितने बच्चे जेलों में है
कितने जख़्मीज़ख़्मी,भूखे और बीमार पड़े हैं
माँ तुम इंक़लाब नहीं लिखती
किसी सवाल का जवाब नहीं लिखती
दंगा है,मंहगाई है
सड़क पर कुचली लाश पड़ी है
धूप है, पसीना है
पेड़ों पर हैं लाश टंगी
खेत बेचैन,खलिहान है खाली
डूब गयी फसलें रोती हैं
माँ तुम कविता में हँसती हो
किताबें मिली नहीं हैं जिनको
उनकी आँखों के सपनों को छीन लिया निर्मम बाज़ारों ने
चोरी हुए सपनों की शिकायत दर्ज़ कहां कहाँ करनी होती है?हिरासत मे मरे लोगों की शिनाख्त शिनाख़्त कैसे करनी पड़ती है?
इनमें से कुछ भी तुम क्यों नहीं लिखती हो?
80
edits