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दौड़ जाने दो क्षण भर / इला कुमार
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03:25, 25 नवम्बर 2008
Added हूई
उसी छांव के सहारे पलती बढती
जाने कब
हुयी
हूई
घने वृक्ष जैसी बड़ी मैं
पता नहीं बीते कितने बरस
भूल गए
क्षण,
सारे के सारे, पुराने पल
इस क्षण ऊंचे लोहे के जालीदार गेट को देख
Sneha.kumar
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