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वतन पे वीर हमेशा निसार होते हैं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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4 फ़रवरी
बनो तो मुफ़लिसो-नादार के बनो मेहमाँ
वो
मेहजबान
मेजबान
बड़े
ग़मगुसार
ग़म गुसार
होते हैं
ये तेरी ज़ुल्फ़ बिखरती है जब तेरे रुख़ पर
'रक़ीब' होते हैं वो लोग पैकरे-उल्फ़त
के जिनके दामने-दिल तार-तार होते हैं
</poem>
SATISH SHUKLA
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