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|रचनाकार=अनिल चावड़ा
|अनुवादक=मालिनी गौतम
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<poem>
स्टील जैसा चमकदार
लालरंग की पट्टी वाला
स्नेह की पिनों को अपने भीतर समाए हुए
बिखरे हुए सम्बन्धों के काग़ज़ों को
स्टेपल करने वाला
एक स्टेपलर था मेरे पास

बिना काम के, उल्टे-सीधे स्टेपल हो गये संबंधों को
उखाड़ने के लिए
एक नुकीला भाग भी था इसमें

वह नुकीला भाग आजकल कुछ अधिक ही मुड़ गया है
कुछ भी ग़लत-सलत स्टेपल हो जाए तो
उखाड़ते नहीं बनता,
काग़ज़ों में पिन भी ठीक से नहीं लगती,

सम्बन्ध बिखर जाते हैं
अक्सर फट भी जाते हैं
कभी-कभार हाथ में लग जाती है पिन
और उँगली से निकल आता है ख़ून

ख़ूब कोशिश की रिपेयर करने की
लेकिन ठीक नहीं हुआ तो नहीं ही हुआ
थक-हारकर दुकान पर गया
रिपेयर करवाने के लिए

दुकानदार ने कहा :
"स्टेपलर को भला कौन रिपेयर करवाता है? बदल लो, दूसरा ले लो"

लेकिन यह स्टेपल मेरी छाती में है
और मैं अपनी छाती बदल नहीं सकता...।

'''मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : मालिनी गौतम'''
</poem>
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