Changes

अंतत: / सुकेश साहनी

22 bytes removed, 29 मार्च
मेरे होठों पर
पर नहीं रोक सका मेरे
रोम - छिद्रों से बहता पसीना
झल्लाकर
उसने काट डाले मेरे
अन्ततः
उसने झोंक दिया मुझको
बिजली की भट्ठी में;
पर नहीं छीन सका मुझसे
अंसख्य-असंख्य माँओं की कोखेंमाँएँ
</poem>