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|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=सुरेश सलिल
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’समन सरीसी’ तुर्की के महान योद्धा कवि नाज़िम हिक़मत की अन्तिम लम्बी तीन कविताओं में से पहली कविता है। यह कविता उन्होंने 1961 में लिखी थी और अपनी आख़िरी पत्नी (रूसी पत्नी वेरा तुलिकोवा) को समर्पित की थी। ’समन-सरीसी’ तुर्की का शब्दबन्ध है, जिसका मतलब अँग्रेज़ी में ब्लाण्ड बालों वाली होता है या फिर इस शब्दबन्ध को ’पुआल जैसा पीला’ के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। यह कविता दरअसल एक ’प्रेम कविता’ की तरह लिखी गई है। प्रेम से जुड़ी असुरक्षा का भाव पूरी कविता में ’सिनेमा की कट-शाट शैली’ में पसरा हुआ है। नाज़िम और वेरा की उम्र में ख़ासा फ़ासला था। तिरेपन साला नाज़िम की ज़िन्दगी में वेरा तुलिकोवा उस समय आईं, जब वेरा की उम्र मुश्किल से तेइस साल की थी। दोनों लम्बी समझदारी के बाद परस्पर सहमति से पति-पत्नि बने थे, किन्तु उम्रगत असुरक्षा की भावना नाज़िम के अवचेतन में कहीं न कहीं फँसी रह गई थी। हालाँकि त्युलिकोवा के मन में ऐसी कोई कुण्ठा या अन्तर्द्वन्द्व नहीं था और वे अन्त तक नाज़िम के साथ रहीं और नाज़िम के निधन के बाद भी अपने अन्तिम समय तक नाज़िम की पत्नी के रूप में ही अपनी पहचान दर्ज करती रहीं। नाज़िम की जन्म-शताब्दी से कुछ समय पहले ही 19 मार्च 2001 को मसक्वा में वेरा तुलिकोवा का निधन हुआ। वेरा तुलिकोवा नाटककार थीं
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