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30 अप्रैल {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रश्मि विभा त्रिपाठी
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|संग्रह=
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<poem>
अब
सीने पर रख लिया है पत्थर
मैंने
और जज्बात सीने के
रख लिए हैं आँखों में
ताकि जिसके लिए
दिल जज्बाती हुआ था
ज़िन्दगी में पहली बार,
और पाया था मौत से बदतर दर्द
फिर से न उठे हूक वैसी
इस दिल में
जिसने
आँखों का कलेजा
चीर दिया था
कलेजा न होते हुए
तब रोते हुए
की थीं मिन्नतें
आँखों ने
दिल से
कि मेरी रोशनी तुम ले लो
और मुझे दे दो जज्बात
ताकि तुम देख सको
जज़्बात से खेलने वाले को
और मैं न रोऊँ
तुम्हारे दर्द को महसूस कर
इसलिए आँखें रखेंगीं जज्बात
फिर दिल न हो पाएगा
उम्रभर मजरूह
दिल देखेगा अब
जिस्मों में जिन्दा बच गई रूह।
</poem>