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<poem>
स्वदेश से चोंच में ख़ुशी के टुकडे दबाए
खबर का एक पक्षी
दिल के झरोखे पर आकर बैठता है
आँसू बनकर गिरता है जीवन
हाय ये ख़ुशी!

स्वदेश से घरपरिवार का दुःख लेकर
संदेश का काला बादल आ पहुँचता है
लाता है दर्द भरी हवा
कड़कती है दिल में दुःखों की बिजली
हाय ये दुःख!

परदेस तो
दोधारी तलवार है
जो ख़ुशी में भी काटती है
दुःख में भी काटती है।
</poem>
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