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आरजू / रसूल हमज़ातफ़ / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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4 अगस्त
मुझे मोजज़ों पे यक़ीं नहीं
मगर आरज़ू है कि जब कज़ा
मुझे बज़्मे-
दहरसे
दहर से
ले चले
तो फिर एक बार ये अज़न दे
कि लहद से लौट के आ सकूँ
अनिल जनविजय
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