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17 अगस्त {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चरण जीत चरण
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|संग्रह=
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<poem>
उस कहानी में बस इक वह था और मैं
फिर कहानी से वह गुम हुआ और मैं
एक टहनी पर कुछ कड़वे फल रह गए
वसवसे, बेबसी, फासला, और मैं
उसके जाने के बाद और बचता भी क्या ?
बस ख्यालों का इक सिलसिला और मैं
सब जुदाई की आवाज़ सुनने लगे
पेड़, ख़ुशबू, सफर, रास्ता और मैं
और फ़िर बज़्म में सिर्फ़ हम दो रहे
एक टूटा हुआ राबता और मैं
आग सिगरेट की राख में छुप गई
मेरे भीतर बहुत कुछ जला और मैं
</poem>