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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'}}[[category: नज़्म]]<poem>'''लेखन वर्ष: २००३ '''<br/><br/>लहर इक ‘विनय’<br/>टकराया जो पत्थर से टूट गया<br/>जब भी निकला आगे<br/>उसके हाथों से एक हाथ छूट गया<br/><br/>
जब भी बैठता है<br/>वो यारों के साथ तन्हा बैठता है<br/>उसकी यारी इक ख़ता निकली<br/>पास जिसके भी गया वो रूठ गया<br/><br/>
लहर इक ‘विनय’<br/>टकराया जो पत्थर से टूट गया<br/><br/>
नाचीज़ खु़द को खा़स समझ बैठा<br/>‘वो’ अजनबी पेश रहा<br/>जब दिल की बात ज़ुबाँ पर लाया<br/>मरासिम टूट गया…<br/><br/>
जब भी निकला आगे<br/>उसके हाथों से एक हाथ छूट गया<br/><br/>
ग़म क्या थे?<br/>अफ़सोस किस बात का करता वह<br/>जब जी में आया उसके<br/>खु़द का दोस्त बनके खु़द से रूठ गया<br/><br/>
लहर इक ‘विनय’<br/>टकराया जो पत्थर से टूट गया<br/>जब भी निकला आगे<br/>उसके हाथों से एक हाथ छूट गया<br/><br/poem>