भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदस्य वार्ता:83.167.112.21

3,778 bytes removed, 17:37, 4 जनवरी 2009
पृष्ठ से सम्पूर्ण विषयवस्तु हटा रहा है
अनिल जी जानकारी के लिए धन्यवाद और चांद और चाँद वाली बात रामेश्ववर जी ने बहुत अच्छी तरह से लिखी है शायद अब मेरी आवश्यकता नहीं हैं मैं उसको ही यहाँ पेस्ट करती हूँ:
'''
बन्धुवर अनिल जनविजय जी नमस्कार ! मंत्र ,मंदिर ,मंथरा ,द्वंद्व गंध बंधु , गंधर्व- में अनुस्वार प्रयुक्त हुआ है । अनुस्वार का अर्थ है स्वर के बाद में आने वाला ।संस्कृत में ये शब्द पंचम वर्ण का ध्यान रखते हुए इस प्रकार लिखे जाएँगे-मन्त्र ,मन्दिर ,मन्थरा द्वन्द्व ,गन्ध बन्धु ,गन्धर्व ;क्योंकि इन शब्दों में आए क्रमश: त् ,द् , थ् द् , ध् के वर्ग का पंचम वर्ण न् है । इसी तरह दंड ,प्रचंड ,वितंडा भी अपने पंचम वर्ण ण् के साथ (दण्ड ,प्रचण्ड , वितण्डा ) लिखे जाएँगे । इनका चन्द्र बिन्दु से कोई वास्ता नहीं । जो पंचम वर्ण के दायरे में नहीं आते ,जैसे - य र ल व श ष ह ; वहाँ अनुस्वार का ही प्रयोग होता है ,जैसे हंस ,वंश ,दंश ,संशय ,संयत सारांश आदि ।अनुनासिक के उच्चारण के समय हवा मुख और नाक दोनों से निकलती है। जब मात्रा शिरोरेखा के ऊपर लगती है तो अनुनासिक उच्चारण होने पर भी अनुस्वार ही लगाया जाता है ,यदि मात्रा शिरोरेखा के ऊपर नहीं है तो चन्द्रबिन्दु का प्रयोग होता है ,जैसे -हँसना ,धँसना बाँधना चाँद , माँद ,आँख ,पाँच आँच बाँचना ,जाँचना। टाइप राइटर के चलते यह अराजकता आई है ।कुछ लोग इस झमेले से बचना चाहते हैं और अनुस्वार से ही काम चला रहे हैं।उनका क्या किया जाए ? हंस और हँस (तद्भव) में तो अन्तर करना ही पड़ेगा ।'''
 
 
मैं तो बस थोड़ा सा ही समय निकाल पाती हूँ अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का, हिन्दी के विद्वानों को तो आप जानते ही हैं, मेरा तो तुच्छ सा सफ़ल या असफल प्रयास मात्र रहता है, आभारी हूँ मार्ग दर्शन कराते रहियेगा।
भावना
41
edits