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तुम रहो यूँ ही / तुलसी रमण

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मेरे भीतर उगे
इस ''बरास1'' के तने को
अपनी बाहों में पूरा समेट \ डबडबाई आँखों
भीनी मुस्कान के साथ
तुम ''झुणक2'' देती रहो
मेरे खिले फूलों फूल को उसी ज़मीन पर उतारने के लिए....  चाहकर भी झपटी नहीं तुम
इस फूल की ओर
बस पीती रहो
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