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प्रदीप

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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।
 
 
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
 
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।
 
 
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
 
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय ।
 
 
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
 
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय ।
 
 
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
 
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग ।
 
 
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
 
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।
 
 
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
 
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय ।
 
 
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
 
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।
 
 
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
 
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।
 
 
सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
 
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय ।
 
- भारतेंदु हरिश्चंद्र
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