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{{KKRachna
|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
|संग्रह=दिन गुलाब होने दो / ओम प्रकाश ओमप्रकाश् सारस्वत
}}
<Poem>
आलोक का पहले वसन
जागो ! उठो ! कुछ कर्म करो,
निज कर बढ़ाओ हे मनुज!
यह सूर्य के रथ की पताका-
विजय-वेला आरती,
यह दिवस-बाल-पिपासितों को-
शांति दे, समतामयी,
इसके खुरों की डार से पावन हआ प्रत्येक कण
तुम राग भरने को उठो,
तुम विश्व वरने को उठो,
ऊषा-समान अरे मनुज !
</poem>