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मातृभाषा / केदारनाथ सिंह

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[[Category:कविताएँ]]
[[Category:केदारनाथ सिंह]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ <Poem>
जैसे चींटियां लौटती हैं
 
बिलों में
 
कठफोड़वा लौटता है
 
काठ के पास
 
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
 
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
 
हवाई अड्डे की ओर
 
ओ मेरी भाषा
 
मैं लौटता हूं तुम में
 
जब चुप रहते-रहते
 
अकड़ जाती है मेरी जीभ
 
दुखने लगती है
 
मेरी आत्मा
  'अकाल में सारस' नामक कविता-संग्रह से</poem>
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