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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
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[[Category:कविता]]
<poem>
पूछा तुमने अति पास बैठ " अब भी न जान पाया आली ।
क्यों तव प्रसून-वपु छवि सँवार थकता न कभीं भी वनमाली ।
किस महाकाव्य की सरस पंक्ति हो किस स्वर की मूर्छना कला।
किस कविता की आनंद-उर्मि किस दृग की सलिल विन्दु विमला ।
क्यों थम चीर तेरा समीर गाता विहाग दे दे ताली
परिरंभ विचुम्बित अधरामृत की क्यों न रिक्त होती प्याली ?"
बोली न, विमुग्ध रही सुनती बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली॥२१॥
</poem>