Changes

शुभ-लाभ / सरोज परमार

1,591 bytes added, 12:08, 29 जनवरी 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज परमार |संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज प...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सरोज परमार
|संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज परमार
}}
[[Category:कविता]]
<poem>

छुटपन से देखती आ रही हूँ
गली की पीठ से सटी दुकान
जिसमें आज भी सजी हैं मैले अमृतबान में
लैमनजूस की गोलियाँ
उसके माथे पर आज भी गेरू से
उकेरा गया है ‘शुभ-लाभ’
आप जानते हैं
शुभ और लाभ बेमेल रिश्तों का नाम है
शुभ को सोना पड़ता है भूखा
मिली है पैबन्द लगी उतरन
अक्सर छत नहीं होती उसके सिर पर
चिन्ताओं में डूबा
ज़िन्दगी से ऊबा
रहता है शुभ
पर सलाम बजते हैं लाभ को अक्सर
जेबों में सिमटे होते हैं मनचाहे अवसर
लाभ के बीजगणित में
कम्बल-सी गर्माहट
फिर भी शुभ और लाभ बैठे हैं इकट्ठे
उस खोखे के माथे पर
जिसके सिर पर
नहीं है टोपी न ही बरगद का साया.


</poem>
Anonymous user