भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूप में बैठी औरत / सरोज परमार

1,004 bytes added, 12:16, 29 जनवरी 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज परमार |संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज प...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सरोज परमार
|संग्रह=समय से भिड़ने के लिये / सरोज परमार
}}
[[Category:कविता]]
<poem>
धूप में बैठी औरत
जुराब बुन रही है
मन ही मन उसके पैरों का माओ गुन रही है
चूल्हे पर उफनी दाल
सेहन में रम्भाए गैया
घड़ौंची के पानी में
बीठी सोन-चिरैया
मुँडेर पर बोले कागा
राम जी आवे मोर भैया
कंगन चूनर लावे
जले पड़ोस की यांया.
एड़ी के फन्दे घटा-बढ़ा
कुछ तज़किरे चुन रही है
धूप में बैठी औरत
जुराब बुन रही है.

</poem>
Anonymous user