भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मुझे मंदिरों ने दी निदा
मुझे मसजिदों मस्जिदों ने दी सज़ा
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मेरी सांस साँस भी रुकती नहीं
मेरे पाँव भी थमते नहीं
मेरी आह भी गिरती नहीं
मेरा दम ही कुछ ऐसे रुका
मैं कि रास्ते पे चल पड़ी
</poem>