भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
सुर्ख़ महलों में जवाँ जिस्मों के अम्बार लगे
सहमी सहमी सी फ़िज़ाओं में ये विराँ वीराँ मर्क़द
इतना ख़ामोश है फ़रियादकुना हो जैसे
सर्द शाख़ों में हवा चीख़ रही है ऐसे
तू मुझे छोड़िके ठुकरा के भी जा सकती है
तेरे हाथों में मेरा सात है ज़न्जीर नहीं
 
 
'''शब्दार्थ '''<br>
 
मगरूर - घमंडी, <br>
तस्कीं - संतोष, चैन <br>
तकदीस - पवित्रता<br>
160
edits