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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एम० के० मधु |संग्रह= }} <Poem> उसकी बालकनी पर गमले में ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=एम० के० मधु
|संग्रह=
}}
<Poem>
उसकी बालकनी पर
गमले में कैक्टस और लिलि के पौधे
साथ-साथ सजे हैं
मेरी खिड़की से यह साफ़-साफ़ दीखता है
कैक्टस की विशालता के बीच
लिलि का पौधा दब सा गया है
किन्तु जब कभी फूल उसमें दिख जाता है
मेरे अन्दर एक पूरी पृथ्वी
अपनी धुरी पर घूम जाती है
अपनी खिड़की पर खड़े-खड़े
मैं कभी-कभी बहुत भीग जाता हूँ
जब उसकी बालकनी पर छितराया
छोटा-सा, नन्हा-सा आकाश
कारण या अकारण गीला हो जाता है
उसकी बालकनी के गमले
और भीगे उसके नन्हें आकाश से
मेरा क्या रिश्ता है
यह मैं नहीं जानता हूँ
किन्तु ऎसा जब कभी होता है
मैं पृथ्वी की गति में
दौड़ने लगता हूँ
और उसके आकाश को
बाँहों में भरने का
एक कठोर दुःसाहस करता हूँ
महीनों बाद दौरे से लौटकर
मैं अपने घर आया हूँ
अपनी खिड़की पर फिर खड़ा हूँ
सामने की बालकनी
अपने पूरे वज़ूद के साथ क़ायम है
किन्तु लिलि नहीं है
उसके गमले और सूखे ठूँठ पर
कैक्टस की विशाल शाखाएँ काबिज़ हैं
डायनासोर की तरह।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=एम० के० मधु
|संग्रह=
}}
<Poem>
उसकी बालकनी पर
गमले में कैक्टस और लिलि के पौधे
साथ-साथ सजे हैं
मेरी खिड़की से यह साफ़-साफ़ दीखता है
कैक्टस की विशालता के बीच
लिलि का पौधा दब सा गया है
किन्तु जब कभी फूल उसमें दिख जाता है
मेरे अन्दर एक पूरी पृथ्वी
अपनी धुरी पर घूम जाती है
अपनी खिड़की पर खड़े-खड़े
मैं कभी-कभी बहुत भीग जाता हूँ
जब उसकी बालकनी पर छितराया
छोटा-सा, नन्हा-सा आकाश
कारण या अकारण गीला हो जाता है
उसकी बालकनी के गमले
और भीगे उसके नन्हें आकाश से
मेरा क्या रिश्ता है
यह मैं नहीं जानता हूँ
किन्तु ऎसा जब कभी होता है
मैं पृथ्वी की गति में
दौड़ने लगता हूँ
और उसके आकाश को
बाँहों में भरने का
एक कठोर दुःसाहस करता हूँ
महीनों बाद दौरे से लौटकर
मैं अपने घर आया हूँ
अपनी खिड़की पर फिर खड़ा हूँ
सामने की बालकनी
अपने पूरे वज़ूद के साथ क़ायम है
किन्तु लिलि नहीं है
उसके गमले और सूखे ठूँठ पर
कैक्टस की विशाल शाखाएँ काबिज़ हैं
डायनासोर की तरह।
</poem>