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Kavita Kosh से
सीढ़ियाँ ही सीढ़ियाँ हैं
:: रोशनी ही पी गए
:: कुछ लोग रोश्नदान रोशनदान थे जो
:: आग ही अपनी नहीं
:: किस आग को पालो सहेजो?