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|रचनाकार=सौरीन्द्र बारिक
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तुम्हारे अधर का रंग इस गुलाब में
और मेरा ही रूधिर उस अधर में
कहीं मेरा रूधिर बड़े चाव से तुम अपने जूड़े में
लेप तो नहीं रही ?
'''मूल उड़िया से अनुवाद - वनमाली दास
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